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स त्वं नो॑ अग्नेऽव॒मो भ॑वो॒ती नेदि॑ष्ठो अ॒स्या उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ। अव॑ यक्ष्व नो॒ वरु॑णं॒ ररा॑णो वी॒हि मृ॑ळी॒कं सु॒हवो॑ न एधि ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tvaṁ no agne vamo bhavotī nediṣṭho asyā uṣaso vyuṣṭau | ava yakṣva no varuṇaṁ rarāṇo vīhi mṛḻīkaṁ suhavo na edhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒व॒मः। भ॒व॒। ऊ॒ती। नेदि॑ष्ठः। अ॒स्याः। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टौ। अव॑। य॒क्ष्व॒। नः॒। वरु॑णम्। ररा॑णः। वी॒हि। मृ॒ळी॒कम्। सु॒ऽहवः॑। नः॒। ए॒धि॒॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:1» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:12» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वन् पुरुष (सः) वह (त्वम्) आप (अस्याः) इस (उषसः) प्रातःकाल के (व्युष्टौ) विशेष दाह में (नेदिष्ठः) अत्यन्त समीप स्थित (ऊती) रक्षण आदि कर्म से (नः) हम लोगों के (अवमः) रक्षा करनेवाले (भव) हूजिये (वरुणम्) श्रेष्ठ अध्यापक वा उपदेशक को (रराणः) देते हुए (नः) हम लोगों को (अव, यक्ष्व) प्राप्त हूजिये और (सुहवः) उत्तम प्रकार बुलानेवाले हुए (नः) हम लोगों के लिये (मृळीकम्) सुख करनेवाले कार्य्य को (वीहि) व्याप्त हूजिये और हम लोगों को (एधि) प्राप्त हूजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - वह ही अध्यापक वा राजा श्रेष्ठ है कि जो उत्तम शिक्षा से हम लोगों की प्रातःकाल के सदृश रक्षा करे। दुष्ट आचरण से अलग करके श्रेष्ठ आचरण करावे ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! स त्वमस्या उषसो व्युष्टौ नेदिष्ठः सन्नूती नोऽवमो भव। वरुणं रराणः सन्नोऽव यक्ष्व सुहवः सन्नो मृळीकं वीहि न एधि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (त्वम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) पावक इव विद्वन् (अवमः) रक्षकः (भव) (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया (नेदिष्ठः) अतिशयेन समीपस्थः (अस्याः) (उषसः) प्रातःकालस्य (व्युष्टौ) विशेषेण दाहे (अव) (यक्ष्व) सङ्गच्छस्व (नः) अस्मभ्यम् (वरुणम्) श्रेष्ठमध्यापकमुपदेशकं वा (रराणः) ददन् (वीहि) व्याप्नुहि (मृळीकम्) सुखकरम् (सुहवः) शोभनाऽऽह्वानः (नः) अस्मान् (एधि) प्राप्तो भव ॥५॥
भावार्थभाषाः - स एवाऽध्यापको राजा श्रेष्ठोऽस्ति यः सुशिक्षयाऽस्मानुषाइव रक्षेद् दुष्टाचारात् पृथक्कृत्य श्रेष्ठाचारं कारयेत् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सुशिक्षणाने आमचे उषेप्रमाणे रक्षण करतो व दुष्ट आचरणापासून परावृत्त करून श्रेष्ठ आचरण करवितो, तोच राजा श्रेष्ठ असतो. ॥ ५ ॥